ख़ुदा – khuda

जो नहीं हमारे हक़ में, उसकी हिमायत क्यों करें हम,
नाराज ही रहना है खुदा को तो इबादत क्यों करें हम,

बदल जाएंगे रस्ते, मंजिले भी बदल जाएगी,
चंद लम्हों की सोहबत मैं किसी से अदावत क्यों करें हम,

हर फ़न में खुद को माहिर समझे बैठें हैं,
हुज़ूर हैं वो, हुज़ूर की ख़िलाफ़त क्यों करें हम,

बात छोटी सी है, घर में भी सुलझ सकती है,
हर बात को मसल-ए-अदालत क्यों करें हम,

मिलेगा कभी तो कर लेंगे दुआ सलाम भी,
नाराज ही रहना है खुदा को तो इबादत क्यों करें हम,

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